पर्यावरण एवं विज्ञान >> दैनिक जीवन में गणित दैनिक जीवन में गणितआर. एम. भागवत
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गणित क्या है ? इसे अनेक संज्ञाओं जैसे कि कला, विज्ञान का साधन, विज्ञान की भाषा एवं विज्ञान की साम्रागी के रूप में वर्णित किया गया है।
Dainik Jivan Main ganit
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
गणित क्या है ? इसे अनेक संज्ञाओं जैसे कि कला, विज्ञान का साधन, विज्ञान की भाषा एवं विज्ञान की साम्रागी के रूप में वर्णित किया गया है। जीवन के हर क्षेत्र में सभी के द्वारा इस्तेमाल किए जाने से ही संबंधित है दैनिक जीवन में गणित। गणित के उद्भव और विकास संबंधी सुस्पष्ट विवेचन करती हुई यह पुस्तक हमें बताती है कि विविध समस्याओं को हल करने में गणित कैसे हमारी मदद करता है। वस्तुत: यह पुस्तक इस बात को रेखांकित करती है कि गणित सभी के लिए आवश्यक है जिसकी ध्वनि विश्वव्यापी गणितीय आंदोलन ‘गणित सबके लिए’ में भी अनुगुंजित होती है।
मुंबई स्थित होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केन्द्र (एच.बी.सी.एस.ई.) के साथ जुड़ने से पहले आर.एम.भागवत गणित के अध्यापकों के लिए चलाए जाने वाले अनेक ओरिएंटेशन पाठ्यक्रमों के ‘रिसोर्स पर्सन रहे हैं। वह अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। किशोर (मराठी पत्रिका) तथा साइंस टुडे-2001 में उनके अनेक विज्ञान-विषयक लेख प्रकाशित हो चुके हैं। होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केंद्र तथा आक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित अनेक विज्ञान एवं गणित विषयक पुस्तकों के वह सह-लेखक हैं।
मुंबई स्थित होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केन्द्र (एच.बी.सी.एस.ई.) के साथ जुड़ने से पहले आर.एम.भागवत गणित के अध्यापकों के लिए चलाए जाने वाले अनेक ओरिएंटेशन पाठ्यक्रमों के ‘रिसोर्स पर्सन रहे हैं। वह अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। किशोर (मराठी पत्रिका) तथा साइंस टुडे-2001 में उनके अनेक विज्ञान-विषयक लेख प्रकाशित हो चुके हैं। होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केंद्र तथा आक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित अनेक विज्ञान एवं गणित विषयक पुस्तकों के वह सह-लेखक हैं।
आभार
इस पुस्तक के लेखन के दौरान सभी प्रकार की सहायता एवं सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केंद्र (एच. बी. सी. एस. ई.) के भूतपूर्व निदेशक प्रो. वी. जी. कुलकर्णी एवं मुंबई के टाटा आधारभूत अनुसंधान संस्थान (टी. आई. एफ. आर) को अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने में मुझे अति प्रसन्नता हो रही है। डा. एच. सी. प्रधान का मैं हृदय से आभारी हूँ, जिन्होंने मुझे इस पुस्तक के लेखन के लिए प्रेरित किया। गहन रूप से पांडुलिपि को पढ़कर उन्होंने अपने बहुमूल्य सुझाव मुझे दिए। उनके सतत सहयोग एवं उत्साहवर्धन के लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ। मुंबई स्थित कीर्ति कालेज की डा. सीमा पुरोहित ने पांडुलिपि को ध्यान से पढ़कर अपने कीमती सुझाव दिए।
मैं हृदय से उनका आभार व्यक्त करता हूं। श्री अरुण मावलंकर जिन्होंने पांडुलिपि की प्रेस कापी तैयार करने का उत्तरदायित्व संभाला, श्रीमती वी. एन. पुरोहित जिन्होंने पांडुलिपि को कुशलतापूर्वक टाइप किया, श्री वी. एन. गुरव जिन्होंने वर्ड प्रोसेसर पर पांडुलिपि को उतारा तथा श्री शिवाजी नाडकर जिन्होंने सावधानीपूर्वक इसकी ‘जेराक्स’ कापी तैयार की, इन सभी के प्रति मैं अपना धन्यवाद व्यक्त करता हूं। होमी भाभा विज्ञान केंद्र के स्टाफ के इन सभी सदस्यों ने मेरी बड़ी मदद की है। अपने ही परिवार के सदस्यों नीलेश, समीर, वृंदा तथा धनश्री को पांडुलिपि के लिए कुछ चित्र बनाने के लिए मैं धन्यवाद देता हूं। बाद में इन चित्रों का नेशनल बुक ट्रस्ट ने पुनर्आरेखण किया।
नेशनल बुक ट्रस्ट की संपादिका श्रीमती मंजु गुप्ता के मुझे लगातार उकसाते रहने के बगैर यह पुस्तक पूरी नहीं हो सकती थी। पुस्तक लेखन में हो रहे विलंब को भी उन्होंने धैर्यपूर्वक सहन किया। उनकी उदार सराहना और उत्साहवर्धन के लिए मैं हृदय से उन्हें धन्यवाद देता हूँ।
मैं हृदय से उनका आभार व्यक्त करता हूं। श्री अरुण मावलंकर जिन्होंने पांडुलिपि की प्रेस कापी तैयार करने का उत्तरदायित्व संभाला, श्रीमती वी. एन. पुरोहित जिन्होंने पांडुलिपि को कुशलतापूर्वक टाइप किया, श्री वी. एन. गुरव जिन्होंने वर्ड प्रोसेसर पर पांडुलिपि को उतारा तथा श्री शिवाजी नाडकर जिन्होंने सावधानीपूर्वक इसकी ‘जेराक्स’ कापी तैयार की, इन सभी के प्रति मैं अपना धन्यवाद व्यक्त करता हूं। होमी भाभा विज्ञान केंद्र के स्टाफ के इन सभी सदस्यों ने मेरी बड़ी मदद की है। अपने ही परिवार के सदस्यों नीलेश, समीर, वृंदा तथा धनश्री को पांडुलिपि के लिए कुछ चित्र बनाने के लिए मैं धन्यवाद देता हूं। बाद में इन चित्रों का नेशनल बुक ट्रस्ट ने पुनर्आरेखण किया।
नेशनल बुक ट्रस्ट की संपादिका श्रीमती मंजु गुप्ता के मुझे लगातार उकसाते रहने के बगैर यह पुस्तक पूरी नहीं हो सकती थी। पुस्तक लेखन में हो रहे विलंब को भी उन्होंने धैर्यपूर्वक सहन किया। उनकी उदार सराहना और उत्साहवर्धन के लिए मैं हृदय से उन्हें धन्यवाद देता हूँ।
आर. एम. भागवत
प्रस्तावना
गणित मानव मस्तिष्क की उपज है जिसका मानव गतिविधियों एवं प्रकृति के निरीक्षण द्वारा ही उद्भव हुआ। मानव मस्तिष्क की चिंतन प्रक्रियाओं के मूल में पैठ कर ही गणित मुखर रूप से उनकी अभिव्यक्ति करता है। वास्तविक संसार अवधारणाओं की दुनिया में बदल जाता है और गणित वास्तविक जगत को नियमित करने वाली मूर्त धारणाओं के पीछे काम करने वाले नियमों का अध्ययन करता है। ज्यादातर दैनिक जीवन का गणित इन मूल धारणाओं का ही सार है और इसलिए इसे आसानी से समझा-बूझा जा सकता है। हालांकि अधिकांश धारणाएं अंत:प्रज्ञा के द्वारा ही हम पर प्रकट होती है, फिर भी शुद्ध एवं संक्षेप रूप में उन धारणाओं को व्यक्त करने के लिए उचित शब्दावली एवं कुछ नियमों और प्रतीकों की आवश्यकता पड़ती है।
अत: गणित की अपनी अलग ही भाषा एवं लिपि होती है जिसे पहले जानना-समझना जरूरी होता है। शायद यही कारण है कि दैनिक जीवन से असंबद्धित मानकर इसे समझने की दृष्टि से कठिन माना जाता है, जबकि हकीकत में यह वास्तविक जीवन के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा ही नहीं है, बल्कि उसी से इसकी उत्पत्ति भी हुई है। यह विडंबना ही है कि ज्यादातर लोग गणित के प्रति विमुखता दिखा कर उससे दूर भागते हैं, जबकि वस्तुस्थिति यह है कि जीवन तथा ज्ञान के हर क्षेत्र में इसकी उपयोगिता है। यह केवल संयोग नहीं है कि आर्किमिडीज, न्यूटन, गौस और लैगरांज जैसे महान वैज्ञानिकों के विज्ञान के साथ-साथ गणित में भी अपना महान योगदान दिया है।
मानव ज्ञान की कुछ प्राथमिक विधाओं में संभवतया गणित भी आता है, और यह मानव सभ्यता जितना ही पुराना है। मानव जीवन के विस्तार और इसमें जटिलताओं में वृद्धि के साथ गणित का भी विस्तार हुआ है और उसकी जटिलताएं भी बढ़ी हैं। सभ्यता के इतिहास के पूरे दौर में गुफा में रहने वाले मानव के सरल जीवन से लेकर आधुनिक काल के घोर जटिल एवं बहुआयामी मनुष्य तक आते-आते मानव जीवन में धीरे-धीरे परिवर्तन आया है। इसके साथ ही मानव ज्ञान-विज्ञान की एक व्यापक एवं समृद्ध शाखा के रूप में गणित का विकास भी हुआ है। हालांकि एक आम आदमी को एक हजार साल से बहुत अधिक पीछे के गणित के इतिहास से उतना सरोकार नहीं होना चाहिए, परंतु वैज्ञानिक, गणितज्ञ, प्रौद्योगिकीविद्, अर्थशास्त्री एवं कई अन्य विशेषज्ञ रोजमर्रा के जीवन में गणित की समुन्नत प्रणालियों का किसी न किसी रूप में एक विशाल, अकल्पनीय पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं। आजकल गणित दैनिक जीवन के साथ सर्वव्यापी रूप में समाया हुआ दिखता है।
अत: यह जरूरी हो जाता है कि जीवन के विविध क्षेत्रों से जुड़े लोग मानव की प्रगति में गणित के योगदान को समझ-बूझ कर उसकी सराहना करें। यह पुस्तक दैनिक जीवन में गणित के स्वरूप को सरल भाषा एवं जीवन से ही लिए गए दृष्टांतों के माध्यम से समझाने का कार्य करती है। गणित के ऐतिहासिक विकास का वर्णन इस बात पर बल देते हुए किया गया है कि दैनिक जीवन से जुड़ी साधारण-सी गतिविधियों से गणित का प्रादुर्भाव किस तरह से होता है तथा रोजमर्रा की समस्याओं का हल ढूंढ़ने में यह कैसे हमारी मदद करता है। हमारे लिए यह गौरव की बात है कि बारहवीं सदी तक गणित की सम्पूर्ण विकास-यात्रा में उसके उन्नयन के लिए किए गये सारे महत्वपूर्ण प्रयास अधिकांशतया भारतीय गणितज्ञों की खोजों पर ही आधारित थे।
प्राचीन हिंदू गणितज्ञों के योगदान को पुस्तक में पूरी तरह रेखांकित किया गया है। इस तथ्य को भी कि गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है, दैनिक जीवन से संबद्ध अनेक समस्याओं के माध्यम से समझाया गया है। गणितीय शब्दावली एवं सूत्रों का न्यूनतम प्रयोग कर गणित के आवश्यक पहलुओं को सरल भाषा में पुस्तक में बताया गया है। अनेक रेखाचित्रों एवं छायाचित्रों के माध्यम से पुस्तक को भली-भाँति सुसज्जित किया गया है। पुस्तक को रोचक और पठनीय बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया गया है।
आशा है कि गणित को समझने-सराहने एवं उसके अध्ययन में पुस्तक पाठकों को जरूर प्रोत्साहित करेगी।
अत: गणित की अपनी अलग ही भाषा एवं लिपि होती है जिसे पहले जानना-समझना जरूरी होता है। शायद यही कारण है कि दैनिक जीवन से असंबद्धित मानकर इसे समझने की दृष्टि से कठिन माना जाता है, जबकि हकीकत में यह वास्तविक जीवन के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा ही नहीं है, बल्कि उसी से इसकी उत्पत्ति भी हुई है। यह विडंबना ही है कि ज्यादातर लोग गणित के प्रति विमुखता दिखा कर उससे दूर भागते हैं, जबकि वस्तुस्थिति यह है कि जीवन तथा ज्ञान के हर क्षेत्र में इसकी उपयोगिता है। यह केवल संयोग नहीं है कि आर्किमिडीज, न्यूटन, गौस और लैगरांज जैसे महान वैज्ञानिकों के विज्ञान के साथ-साथ गणित में भी अपना महान योगदान दिया है।
मानव ज्ञान की कुछ प्राथमिक विधाओं में संभवतया गणित भी आता है, और यह मानव सभ्यता जितना ही पुराना है। मानव जीवन के विस्तार और इसमें जटिलताओं में वृद्धि के साथ गणित का भी विस्तार हुआ है और उसकी जटिलताएं भी बढ़ी हैं। सभ्यता के इतिहास के पूरे दौर में गुफा में रहने वाले मानव के सरल जीवन से लेकर आधुनिक काल के घोर जटिल एवं बहुआयामी मनुष्य तक आते-आते मानव जीवन में धीरे-धीरे परिवर्तन आया है। इसके साथ ही मानव ज्ञान-विज्ञान की एक व्यापक एवं समृद्ध शाखा के रूप में गणित का विकास भी हुआ है। हालांकि एक आम आदमी को एक हजार साल से बहुत अधिक पीछे के गणित के इतिहास से उतना सरोकार नहीं होना चाहिए, परंतु वैज्ञानिक, गणितज्ञ, प्रौद्योगिकीविद्, अर्थशास्त्री एवं कई अन्य विशेषज्ञ रोजमर्रा के जीवन में गणित की समुन्नत प्रणालियों का किसी न किसी रूप में एक विशाल, अकल्पनीय पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं। आजकल गणित दैनिक जीवन के साथ सर्वव्यापी रूप में समाया हुआ दिखता है।
अत: यह जरूरी हो जाता है कि जीवन के विविध क्षेत्रों से जुड़े लोग मानव की प्रगति में गणित के योगदान को समझ-बूझ कर उसकी सराहना करें। यह पुस्तक दैनिक जीवन में गणित के स्वरूप को सरल भाषा एवं जीवन से ही लिए गए दृष्टांतों के माध्यम से समझाने का कार्य करती है। गणित के ऐतिहासिक विकास का वर्णन इस बात पर बल देते हुए किया गया है कि दैनिक जीवन से जुड़ी साधारण-सी गतिविधियों से गणित का प्रादुर्भाव किस तरह से होता है तथा रोजमर्रा की समस्याओं का हल ढूंढ़ने में यह कैसे हमारी मदद करता है। हमारे लिए यह गौरव की बात है कि बारहवीं सदी तक गणित की सम्पूर्ण विकास-यात्रा में उसके उन्नयन के लिए किए गये सारे महत्वपूर्ण प्रयास अधिकांशतया भारतीय गणितज्ञों की खोजों पर ही आधारित थे।
प्राचीन हिंदू गणितज्ञों के योगदान को पुस्तक में पूरी तरह रेखांकित किया गया है। इस तथ्य को भी कि गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है, दैनिक जीवन से संबद्ध अनेक समस्याओं के माध्यम से समझाया गया है। गणितीय शब्दावली एवं सूत्रों का न्यूनतम प्रयोग कर गणित के आवश्यक पहलुओं को सरल भाषा में पुस्तक में बताया गया है। अनेक रेखाचित्रों एवं छायाचित्रों के माध्यम से पुस्तक को भली-भाँति सुसज्जित किया गया है। पुस्तक को रोचक और पठनीय बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया गया है।
आशा है कि गणित को समझने-सराहने एवं उसके अध्ययन में पुस्तक पाठकों को जरूर प्रोत्साहित करेगी।
1
भूमिका
बहुत पुरातन काल से ही विषयों में गणित सर्वाधिक उपयोगी रहा है। ‘मैथेमेटिक्स’ शब्द की उत्पत्ति यूनानी शब्द ‘मैथेमेटा’ से हुई है। जिसका अर्थ है ‘वस्तुएं (विषय) जिनका अध्ययन किया जाता है।’ बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ यह परिभाषा वास्तविक जगत के बारे में कोई भी जानकारी नहीं दे पाती है, पर हमें यह जरूर बताती है कि एक वस्तु (तथ्य) के बाद दूसरी वस्तु के आने का एक निश्चित क्रम होता है। ज्ञान के किसी क्षेत्र विशेष में इस कथन का उपयोग अजीब या अटपटा लग सकता है, मगर यूनानी लोग गणित को न केवल संख्याओं और दिक् (स्पेस) का बल्कि खगोलविज्ञान और संगीत का भी अध्ययन मानते थे। बेशक अब हम खगोलविज्ञान और संगीत को गणित के विषय नहीं मानते, मगर फिर भी गणित का दायरा आज पहले से भी कहीं अधिक विस्तृत हुआ है।
गणित की उत्पत्ति कैसे हुई, यह आज इतिहास के पन्नों में ही विस्मृत है। मगर हमें मालूम है कि आज के 4000 वर्ष पहले बेबीलोन तथा मिस्र सभ्यताएं गणित का इस्तेमाल पंचांग (कैलेंडर) बनाने के लिए किया करती थीं जिससे उन्हें पूर्व जानकारी रहती थी कि कब फसल की बुआई की जानी चाहिए या कब नील नदी में बाढ़ आएगी, या फिर इसका प्रयोग वे वर्ग समीकरणों को हल करने के लिए किया करती थीं। उन्हें तो उस प्रमेय (थ्योरम) तक के बारे में जानकारी थी जिसका कि गलत श्रेय पाइथागोरस को दिया जाता है। उनकी संस्कृतियाँ कृषि पर आधारित थीं और उन्हें सितारों और ग्रहों के पथों के शुद्ध आलेखन और सर्वेक्षण के लिए सही तरीकों के ज्ञान की जरूरत थी। अंक गणित का प्रयोग व्यापार में रुपयों-पैसों और वस्तुओं के विनिमय या हिसाब-किताब रखने के लिए किया जाता था। ज्यामिति का इस्तेमाल खेतों के चारों तरफ की सीमाओं के निर्धारण तथा पिरामिड जैसे स्मारकों के निर्माण में होता था।
मिलेटस निवासी थेल्स (645-546 ईसा पूर्व) को ही सबसे पहला सैद्धांतिक गणितज्ञ माना जाता है। उसने बताया कि किसी भी वस्तु की ऊंचाई को मापन छड़ी द्वारा निक्षेपित परछाई से तुलना करके मापा जा सकता है। ऐसा मानते हैं कि उसने एक सूर्य ग्रहण के होने के बारे में भी भविष्यवाणी की थी। उसके शिष्य पाइथागोरस ने ज्यामिति को यूनानियों के बीच एक मान्य विज्ञान का स्वरूप दिलाकर यूक्लिड और आर्किमिडीज के लिए आगे का मार्ग प्रशस्त किया।
बेबीलोन निवासियों के विरासत में मिले ज्ञान में यूनानियों ने काफी वृद्धि की। इसके अलावा गणित को एक तर्कसंगत पद्धति के रूप में उन्होंने स्थापित भी किया-एक ऐसी पद्धति जिसमें कुछ मूल तथ्यों या धारणाओं को सत्य मानकर (जिन्हें प्रमेय कहते हैं) निष्कर्षों (जिन्हें उपपत्ति या प्रमाण कहते हैं) तक पहुंचा जाता है।
कुछ हद तक हम सब के सब गणितज्ञ हैं। अपने दैनिक जीवन में रोजाना ही हम गणित का इस्तेमाल करते हैं-उस वक्त जब समय जानने के लिए हम घड़ी देखते हैं, अपने खरीदे गए सामान या खरीदारी के बाद बचने वाली रेजगारी का हिसाब जोड़ते हैं या फिर फुटबाल टेनिस या क्रिकेट खेलते समय बनने वाले स्कोर का लेखा-जोखा रखते हैं।
व्यवसाय और उद्योगों से जुड़ी लेखा संबंधी संक्रियाएं गणित पर ही आधारित हैं। बीमा (इंश्योरेंस) संबंधी गणनाएं तो अधिकांशतया ब्याज की चक्रवृद्धि दर पर ही निर्भर है। जलयान या विमान का चालक मार्ग के दिशा-निर्धारण के लिए ज्यामिति का प्रयोग करता है। सर्वेक्षण का तो अधिकांश कार्य ही त्रिकोणमिति पर आधारित होता है। यहां तक कि किसी चित्रकार के आरेखण कार्य में भी गणित मददगार होता है, जैसे कि संदर्भ (पर्सपेक्टिव) में जिसमें कि चित्रकार को त्रिविमीय दुनिया में जिस तरह से इंसान और वस्तुएं असल में दिखाई पड़ते हैं, उन्हीं का तदनुरूप चित्रण वह समतल धरातल पर करता है।
संगीत में स्वरग्राम तथा संनादी (हार्मोनी) और प्रतिबिंदु (काउंटरपाइंट) के सिद्धांत गणित पर ही आश्रित होते हैं। गणित का विज्ञान में इतना महत्व है तथा विज्ञान की इतनी शाखाओं में इसकी उपयोगिता है कि गणितज्ञ एरिक टेम्पल बेल ने इसे ‘विज्ञान की साम्राज्ञी और सेविका’ की संज्ञा दी है। किसी भौतिकविज्ञानी के लिए अनुमापन तथा गणित का विभिन्न तरीकों का बड़ा महत्व होता है। रसायनविज्ञानी किसी वस्तु की अम्लीयता को सूचित करने वाले पी एच (pH) मान के आकलन के लिए लघुगणक का इस्तेमाल करते हैं। कोणों और क्षेत्रफलों के अनुमापन द्वारा ही खगोलविज्ञानी सूर्य, तारों, चंद्र और ग्रहों आदि की गति की गणना करते हैं। प्राणीविज्ञान में कुछ जीव-जन्तुओं के वृद्धि-पैटर्नों के विश्लेषण के लिए विमीय विश्लेषण की मदद ली जाती है।
उच्च गतिवाले संगणकों द्वारा गणनाओं को दूसरी विधियों द्वारा की गई गणनाओं की अपेक्षा एक अंश मात्र समय के अंदर ही सम्पन्न किया जा सकता है। इस तरह कम्यूटरों के आविष्कार के उन सभी प्रकार की गणनाओं में क्रांति ला दी है। जहां गणित उपयोगी हो सकता है। जैसे-जैसे खगोलीय तथा काल मापन संबंधी गणनाओं की प्रामाणिकता में वृद्धि होती गई, वैसे-वैसे नौसंचालन भी आसान होता गया तथा क्रिस्टोफर कोलम्बस और उसके परवर्ती काल से मानव सुदूरगामी नए प्रदेशों की खोज में घर से निकल पड़ा। साथ ही, आगे के मार्ग का नक्शा भी वह बनाता गया। गणित का उपयोग बेहतर किस्म के समुद्री जहाज, रेल के इंजन, मोटर कारों से लेकर हवाई जहाजों के निर्माण तक में हुआ है। राडार प्रणालियों की अभिकल्पना तथा चांद और ग्रहों आदि तक राकेट यान भेजने में भी गणित से काम लिया गया है। तो संक्षेप में, यही है गणित के विषय क्षेत्र का ब्योरा।
गणित की उत्पत्ति कैसे हुई, यह आज इतिहास के पन्नों में ही विस्मृत है। मगर हमें मालूम है कि आज के 4000 वर्ष पहले बेबीलोन तथा मिस्र सभ्यताएं गणित का इस्तेमाल पंचांग (कैलेंडर) बनाने के लिए किया करती थीं जिससे उन्हें पूर्व जानकारी रहती थी कि कब फसल की बुआई की जानी चाहिए या कब नील नदी में बाढ़ आएगी, या फिर इसका प्रयोग वे वर्ग समीकरणों को हल करने के लिए किया करती थीं। उन्हें तो उस प्रमेय (थ्योरम) तक के बारे में जानकारी थी जिसका कि गलत श्रेय पाइथागोरस को दिया जाता है। उनकी संस्कृतियाँ कृषि पर आधारित थीं और उन्हें सितारों और ग्रहों के पथों के शुद्ध आलेखन और सर्वेक्षण के लिए सही तरीकों के ज्ञान की जरूरत थी। अंक गणित का प्रयोग व्यापार में रुपयों-पैसों और वस्तुओं के विनिमय या हिसाब-किताब रखने के लिए किया जाता था। ज्यामिति का इस्तेमाल खेतों के चारों तरफ की सीमाओं के निर्धारण तथा पिरामिड जैसे स्मारकों के निर्माण में होता था।
मिलेटस निवासी थेल्स (645-546 ईसा पूर्व) को ही सबसे पहला सैद्धांतिक गणितज्ञ माना जाता है। उसने बताया कि किसी भी वस्तु की ऊंचाई को मापन छड़ी द्वारा निक्षेपित परछाई से तुलना करके मापा जा सकता है। ऐसा मानते हैं कि उसने एक सूर्य ग्रहण के होने के बारे में भी भविष्यवाणी की थी। उसके शिष्य पाइथागोरस ने ज्यामिति को यूनानियों के बीच एक मान्य विज्ञान का स्वरूप दिलाकर यूक्लिड और आर्किमिडीज के लिए आगे का मार्ग प्रशस्त किया।
बेबीलोन निवासियों के विरासत में मिले ज्ञान में यूनानियों ने काफी वृद्धि की। इसके अलावा गणित को एक तर्कसंगत पद्धति के रूप में उन्होंने स्थापित भी किया-एक ऐसी पद्धति जिसमें कुछ मूल तथ्यों या धारणाओं को सत्य मानकर (जिन्हें प्रमेय कहते हैं) निष्कर्षों (जिन्हें उपपत्ति या प्रमाण कहते हैं) तक पहुंचा जाता है।
कुछ हद तक हम सब के सब गणितज्ञ हैं। अपने दैनिक जीवन में रोजाना ही हम गणित का इस्तेमाल करते हैं-उस वक्त जब समय जानने के लिए हम घड़ी देखते हैं, अपने खरीदे गए सामान या खरीदारी के बाद बचने वाली रेजगारी का हिसाब जोड़ते हैं या फिर फुटबाल टेनिस या क्रिकेट खेलते समय बनने वाले स्कोर का लेखा-जोखा रखते हैं।
व्यवसाय और उद्योगों से जुड़ी लेखा संबंधी संक्रियाएं गणित पर ही आधारित हैं। बीमा (इंश्योरेंस) संबंधी गणनाएं तो अधिकांशतया ब्याज की चक्रवृद्धि दर पर ही निर्भर है। जलयान या विमान का चालक मार्ग के दिशा-निर्धारण के लिए ज्यामिति का प्रयोग करता है। सर्वेक्षण का तो अधिकांश कार्य ही त्रिकोणमिति पर आधारित होता है। यहां तक कि किसी चित्रकार के आरेखण कार्य में भी गणित मददगार होता है, जैसे कि संदर्भ (पर्सपेक्टिव) में जिसमें कि चित्रकार को त्रिविमीय दुनिया में जिस तरह से इंसान और वस्तुएं असल में दिखाई पड़ते हैं, उन्हीं का तदनुरूप चित्रण वह समतल धरातल पर करता है।
संगीत में स्वरग्राम तथा संनादी (हार्मोनी) और प्रतिबिंदु (काउंटरपाइंट) के सिद्धांत गणित पर ही आश्रित होते हैं। गणित का विज्ञान में इतना महत्व है तथा विज्ञान की इतनी शाखाओं में इसकी उपयोगिता है कि गणितज्ञ एरिक टेम्पल बेल ने इसे ‘विज्ञान की साम्राज्ञी और सेविका’ की संज्ञा दी है। किसी भौतिकविज्ञानी के लिए अनुमापन तथा गणित का विभिन्न तरीकों का बड़ा महत्व होता है। रसायनविज्ञानी किसी वस्तु की अम्लीयता को सूचित करने वाले पी एच (pH) मान के आकलन के लिए लघुगणक का इस्तेमाल करते हैं। कोणों और क्षेत्रफलों के अनुमापन द्वारा ही खगोलविज्ञानी सूर्य, तारों, चंद्र और ग्रहों आदि की गति की गणना करते हैं। प्राणीविज्ञान में कुछ जीव-जन्तुओं के वृद्धि-पैटर्नों के विश्लेषण के लिए विमीय विश्लेषण की मदद ली जाती है।
उच्च गतिवाले संगणकों द्वारा गणनाओं को दूसरी विधियों द्वारा की गई गणनाओं की अपेक्षा एक अंश मात्र समय के अंदर ही सम्पन्न किया जा सकता है। इस तरह कम्यूटरों के आविष्कार के उन सभी प्रकार की गणनाओं में क्रांति ला दी है। जहां गणित उपयोगी हो सकता है। जैसे-जैसे खगोलीय तथा काल मापन संबंधी गणनाओं की प्रामाणिकता में वृद्धि होती गई, वैसे-वैसे नौसंचालन भी आसान होता गया तथा क्रिस्टोफर कोलम्बस और उसके परवर्ती काल से मानव सुदूरगामी नए प्रदेशों की खोज में घर से निकल पड़ा। साथ ही, आगे के मार्ग का नक्शा भी वह बनाता गया। गणित का उपयोग बेहतर किस्म के समुद्री जहाज, रेल के इंजन, मोटर कारों से लेकर हवाई जहाजों के निर्माण तक में हुआ है। राडार प्रणालियों की अभिकल्पना तथा चांद और ग्रहों आदि तक राकेट यान भेजने में भी गणित से काम लिया गया है। तो संक्षेप में, यही है गणित के विषय क्षेत्र का ब्योरा।
2
संख्याएं
हर तरफ संख्याएं ही संख्याएं
संख्याएं हमारे जीवन के ढर्रे को निर्धरित करती हैं। एक आम आदमी के जीवन की निम्नांकित स्थितियों को देखिए:
1. सवेरे-सवेरे अलार्म घड़ी की आवाज एक दफ्तर जाने वाले को जगाती है। ‘‘छह बज गए; अब उठना चाहिए।’’ इस तरह उस व्यक्ति की दिनचर्या की शुरूआत होती है।
2. बस में कंडक्टर यात्री से कहता है : ‘‘चालीस पैसे और दीजिए।’’
यात्री : ‘‘क्यों मैं तो आपको सही भाड़ा दे चुका हूं।’’
कंडक्टर : ‘‘भाड़ा अब 25 प्रतिशत बढ़ गया है।’’ यात्री : ‘‘अच्छा, यह बात है।’’
3. एक गृहिणी किसी महानगर में दूध के बूथ पर जा कर कहती है, ‘‘मुझे दो लीटर वाली एक थैली दीजिए।’’
‘‘मेरे पास दो लीटर वाली थैली नहीं है।’’
‘‘ठीक है, तब एक लीटर वाली एक थैली और आधे-आधे लीटर वाली दो थैलियां ही आप मुझे दे दीजिए।’’
4. एक रेस्तरां में बिल पर नजर दौड़ाते हुए एक ग्राहक कहता है : ‘‘वेटर ! तुमने बिल के पैसे ठीक से नहीं जोड़े हैं। बिल 9.50 की बजाए 8.50 रु. का होना चाहिए।’’
‘‘मुझे अफोसस है, श्रीमान् !’’
ये कुछ ऐसी स्थितियाँ हैं जो संख्याओं के रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल को दर्शाती हैं। जीवन के कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी संख्याओं की अहमियत है जो इतने आम नहीं माने जाते। किसी धावक के समय में 0.001 सैकिंड का अंतर भी उसे स्वर्ण दिला सकता है या उसे इससे वंचित कर सकता है। किसी पहिए के व्यास में एक सेंटीमीटर के हजारवें हिस्से जितना फर्क उसे किसी घड़ी के लिए बेकार कर सकता है। किसी व्यक्ति की पहचान के लिए उसका टेलीफोन नंबर, राशन कार्ड पर पड़ा नंबर, बैंक खाते का नंबर या परीक्षा का रोल नंबर मददगार होते हैं।
कितनी पुरातन हैं ये संख्याएँ ? किसने उनकी खोज की ? संख्याओं का उद्भव कैसे हुआ ? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो स्वाभाविक रूप से ही हमारे जहन में उठते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर भी उतने ही रोचक हैं जितने कि स्वयं में ये प्रश्न। आइए चलें इन संख्याओं संबंधी कुछ तथ्यों की जानकारी हासिल करें।
1. सवेरे-सवेरे अलार्म घड़ी की आवाज एक दफ्तर जाने वाले को जगाती है। ‘‘छह बज गए; अब उठना चाहिए।’’ इस तरह उस व्यक्ति की दिनचर्या की शुरूआत होती है।
2. बस में कंडक्टर यात्री से कहता है : ‘‘चालीस पैसे और दीजिए।’’
यात्री : ‘‘क्यों मैं तो आपको सही भाड़ा दे चुका हूं।’’
कंडक्टर : ‘‘भाड़ा अब 25 प्रतिशत बढ़ गया है।’’ यात्री : ‘‘अच्छा, यह बात है।’’
3. एक गृहिणी किसी महानगर में दूध के बूथ पर जा कर कहती है, ‘‘मुझे दो लीटर वाली एक थैली दीजिए।’’
‘‘मेरे पास दो लीटर वाली थैली नहीं है।’’
‘‘ठीक है, तब एक लीटर वाली एक थैली और आधे-आधे लीटर वाली दो थैलियां ही आप मुझे दे दीजिए।’’
4. एक रेस्तरां में बिल पर नजर दौड़ाते हुए एक ग्राहक कहता है : ‘‘वेटर ! तुमने बिल के पैसे ठीक से नहीं जोड़े हैं। बिल 9.50 की बजाए 8.50 रु. का होना चाहिए।’’
‘‘मुझे अफोसस है, श्रीमान् !’’
ये कुछ ऐसी स्थितियाँ हैं जो संख्याओं के रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल को दर्शाती हैं। जीवन के कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी संख्याओं की अहमियत है जो इतने आम नहीं माने जाते। किसी धावक के समय में 0.001 सैकिंड का अंतर भी उसे स्वर्ण दिला सकता है या उसे इससे वंचित कर सकता है। किसी पहिए के व्यास में एक सेंटीमीटर के हजारवें हिस्से जितना फर्क उसे किसी घड़ी के लिए बेकार कर सकता है। किसी व्यक्ति की पहचान के लिए उसका टेलीफोन नंबर, राशन कार्ड पर पड़ा नंबर, बैंक खाते का नंबर या परीक्षा का रोल नंबर मददगार होते हैं।
कितनी पुरातन हैं ये संख्याएँ ? किसने उनकी खोज की ? संख्याओं का उद्भव कैसे हुआ ? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो स्वाभाविक रूप से ही हमारे जहन में उठते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर भी उतने ही रोचक हैं जितने कि स्वयं में ये प्रश्न। आइए चलें इन संख्याओं संबंधी कुछ तथ्यों की जानकारी हासिल करें।
संख्याओं का उद्भव
संख्याएं मानव सभ्यता जितनी ही पुरानी हैं। आक्सफोर्ड स्थित एशमोलियन अजायबघर में राजाधिकार का प्रतीक एक मिस्री शाही दंड (रायल मेस) रखा है, जिस पर 1,20,000 कैदियों, 4,00,000 बैलों और 14,22,000 बकरियों का रिकार्ड दर्ज है। इस रिकार्ड से जो 3400 ईसा पूर्व से पहले का है, पता चलता है कि प्राचीन काल में लोग बड़ी संख्याओं को लिखना जानते थे। बेशक संख्याओं की शुरूआत मिस्रवासियों से भी बहुत पहले हुई होगी।
आदिमानव का गिनती से इतना वास्ता नहीं पड़ता था। रहने के लिए उसके पास गुफा थी, भोजन पेड़-पौधों द्वारा या फिर हथियारों से शिकार करके उसे मिल जाता था। मगर करीब 10,000 साल पहले जब आदिमानवों ने गाँवों में बस कर खेती का काम और पशुपालन आरंभ किया तो उनका जीवन पहले से कहीं अधिक जटिल हो गया। उन्हें अपने रोजमर्रा के कार्यक्रम के साथ अपने सार्वजनिक एवं पारिवारिक जीवन में भी नियमितता लाने की जरूरत महसूस हुई। उन्हें पशुओं की गिनती करने, कृषि उपज का हिसाब रखने, भूमि की पैमाइश तथा समय की जानकारी के लिए संख्याओं की जरूरत पड़ी। दुनिया के विभिन्न भागों में जैसे कि बेबीलोन, मिस्र, भारत, चीन तथा कई और स्थानों पर विभिन्न सभ्यताओं का निवास था। इन सभी सभ्यताओं ने संभवतया एक ही समय के दौरान अपनी-अपनी संख्या-पद्धतियों का विकास किया होगा। बेबीलोन निवासियों की प्राचीन मिट्टी की प्रतिमाओं में संख्याएं खुदी मिलती हैं।
तेज धार वाली पतली डंडियों से वे गीली मिट्टी पर शंकु आकार के प्रतीक चिह्नों की खुदाई करते, बाद में इन्हें ईंटों की शक्ल दे देते। एक (1), दस (10), सौ (100) आदि के लिए विशेष प्रतीकों का इस्तेमाल किया जाता था। इन प्रतीकों की पुनरावृत्ति द्वारा ही वे किसी संख्या को प्रदर्शित करते जैसे कि 1000 को लिखने के लिए वे प्रतीक चिह्न का सहारा लेते। या फिर 100 की संख्या को दस बार लिखते थे। बेबीलोनवासी काफी बड़ी संख्याओं की गिनती वे 60 की संख्या के माध्यम से ही करते, जैसा कि आजकल हम संख्या 10 के माध्यम से अपनी गिनती करते हैं। मिस्र के प्राचीन निवासी भी बड़ी संख्याओं की गिनती करना जानते थे तथा साल में 365 दिन होने की जानकारी उनके पास थी।
आदिमानव का गिनती से इतना वास्ता नहीं पड़ता था। रहने के लिए उसके पास गुफा थी, भोजन पेड़-पौधों द्वारा या फिर हथियारों से शिकार करके उसे मिल जाता था। मगर करीब 10,000 साल पहले जब आदिमानवों ने गाँवों में बस कर खेती का काम और पशुपालन आरंभ किया तो उनका जीवन पहले से कहीं अधिक जटिल हो गया। उन्हें अपने रोजमर्रा के कार्यक्रम के साथ अपने सार्वजनिक एवं पारिवारिक जीवन में भी नियमितता लाने की जरूरत महसूस हुई। उन्हें पशुओं की गिनती करने, कृषि उपज का हिसाब रखने, भूमि की पैमाइश तथा समय की जानकारी के लिए संख्याओं की जरूरत पड़ी। दुनिया के विभिन्न भागों में जैसे कि बेबीलोन, मिस्र, भारत, चीन तथा कई और स्थानों पर विभिन्न सभ्यताओं का निवास था। इन सभी सभ्यताओं ने संभवतया एक ही समय के दौरान अपनी-अपनी संख्या-पद्धतियों का विकास किया होगा। बेबीलोन निवासियों की प्राचीन मिट्टी की प्रतिमाओं में संख्याएं खुदी मिलती हैं।
तेज धार वाली पतली डंडियों से वे गीली मिट्टी पर शंकु आकार के प्रतीक चिह्नों की खुदाई करते, बाद में इन्हें ईंटों की शक्ल दे देते। एक (1), दस (10), सौ (100) आदि के लिए विशेष प्रतीकों का इस्तेमाल किया जाता था। इन प्रतीकों की पुनरावृत्ति द्वारा ही वे किसी संख्या को प्रदर्शित करते जैसे कि 1000 को लिखने के लिए वे प्रतीक चिह्न का सहारा लेते। या फिर 100 की संख्या को दस बार लिखते थे। बेबीलोनवासी काफी बड़ी संख्याओं की गिनती वे 60 की संख्या के माध्यम से ही करते, जैसा कि आजकल हम संख्या 10 के माध्यम से अपनी गिनती करते हैं। मिस्र के प्राचीन निवासी भी बड़ी संख्याओं की गिनती करना जानते थे तथा साल में 365 दिन होने की जानकारी उनके पास थी।
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